कोरोना मरीजों के इलाज में जुटे हेल्थ वर्कर्स और डॉक्टर्स को बीमारी से बचाने के लिए मलेरिया, ऑर्थराइटिस और ल्यूपस बीमारी में कारगर हाइड्रोक्सी-क्लोरोक्वीन दवा ने उम्मीद बढ़ा दी है। इसी वजह से दुनिया के कई देशों ने भारत से इस दवा की मांग की है। हालांकि भारत भी इस दवा का रॉ मेटेरियल (एपीआई) तैयार करने में इस्तेमाल होने वाले की स्टार्टिंग मेटेरियल (केएसएम) के लिए करीब-करीब चीन पर निर्भर है। भारत में मुख्य रूप से जाइडस, इप्का और मंगलम फॉर्मास्यूटिकल कंपनियां यह दवा बनाती है। सेंट्रल स्टैंडर्ड ड्रग्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पहले यह दवा सिर्फ मलेरिया के मरीजों के इलाज मेें इस्तेमाल होती थी, लेकिन अब रुमेटाइड ऑर्थराइटिस और ल्यूपस के मरीजों को भी यह दवा दी जाती है, इसलिए इसकी खपत पहले की तुलना में बहुत बढ़ गई है।
भारत में हर माह 40 मीट्रिक टन दवा की एपीआई की क्षमता है, इससे 20 करोड़ टैबलेट बन सकती है